J.M. Rangeela from Bokaro Jharkhand is reciting a poem
उलझ गया है असल नकालों के जाल में,
छुप गया है कुटिया मेरी दलालों के खालों में
बाजार की चकाचोंध लुभावनी लगती है,
भर गया है शहर मेरा विदेशी माल में
शियाशत की आग में सेंक रहे है रोटी
तोंद बढाया अपना अवाम की चौल में
शरताज दिलाया उन्हें हमने मगर
नीतियाँ तय होती हैं उनके ससुराल में,
लूट की दस्तूर कायम है चारों तरफ
इंसानियत की सूरत है फटे हाल में
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